एक दीवाना आब लिखने लगा।
सारा आलम चनाब लिखने लगा।
मैंने लिक्खे थे कुछ सुकून के पल,
और वो इज़्तिराब लिखने लगा।
एक भँवरे से दोस्ती के बाद,
मैं भी केवल गुलाब लिखने लगा।
ज़ुल्मत-ए-शब तो बढ़ गई होती,
पर कोई आफ़ताब लिखने लगा।
मैंने भी उसका सब हिसाब किया,
वो भी फिर से हिसाब लिखने लगा।
थी रसाई न जाम-ओ-मीना तक,
आब को ही शराब लिखने लगा।
मैं हक़ीक़त हूँ, जानता है मगर,
जाने क्यों ख़ाब-ख़ाब लिखने लगा।
मुझको कल तक जो जान कहता था,
मुझको 'ख़ाना ख़राब' लिखने लगा।
_क़
दश्त में दरिया आब में सहरा,
कुछ अलग ही हिसाब लिखने लगा।
धूप से राबिता है बारिश का,
और सूरज सराब लिखने लगा।_
वो जो केवल मेरा ही था 'रौनक़',
वो भी अब इंतिसाब लिखने लगा।
- 'रोहित-रौनक़'
सारा आलम चनाब लिखने लगा।
मैंने लिक्खे थे कुछ सुकून के पल,
और वो इज़्तिराब लिखने लगा।
एक भँवरे से दोस्ती के बाद,
मैं भी केवल गुलाब लिखने लगा।
ज़ुल्मत-ए-शब तो बढ़ गई होती,
पर कोई आफ़ताब लिखने लगा।
मैंने भी उसका सब हिसाब किया,
वो भी फिर से हिसाब लिखने लगा।
थी रसाई न जाम-ओ-मीना तक,
आब को ही शराब लिखने लगा।
मैं हक़ीक़त हूँ, जानता है मगर,
जाने क्यों ख़ाब-ख़ाब लिखने लगा।
मुझको कल तक जो जान कहता था,
मुझको 'ख़ाना ख़राब' लिखने लगा।
_क़
दश्त में दरिया आब में सहरा,
कुछ अलग ही हिसाब लिखने लगा।
धूप से राबिता है बारिश का,
और सूरज सराब लिखने लगा।_
वो जो केवल मेरा ही था 'रौनक़',
वो भी अब इंतिसाब लिखने लगा।
- 'रोहित-रौनक़'
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