इश्क़ अजब है, तोहमत लेकर आया हूँ।
और लगता है , शुहरत लेकर आया हूँ।
बदहाली में भी सालिम ईमान रहा,
मैं दोज़ख़ से जन्नत लेकर आया हूँ।
मिट्टी, पानी, कूज़ागर की फ़नकारी,
और इक धुंधली सूरत लेकर आया हूँ।
कितने रिश्ते, कितने नुस्ख़े, कितना प्यार,
मैं दादी की वसीयत लेकर आया हूँ।
आज 'गली क़ासिम' से होकर गुज़रा था,
साथ में थोड़ी जन्नत लेकर आया हूँ।
अब 'रौनक़' की बात न करना महफ़िल में,
उसके दर से हिजरत लेकर आया हूँ।
- 'रोहित-रौनक़'
और लगता है , शुहरत लेकर आया हूँ।
बदहाली में भी सालिम ईमान रहा,
मैं दोज़ख़ से जन्नत लेकर आया हूँ।
मिट्टी, पानी, कूज़ागर की फ़नकारी,
और इक धुंधली सूरत लेकर आया हूँ।
कितने रिश्ते, कितने नुस्ख़े, कितना प्यार,
मैं दादी की वसीयत लेकर आया हूँ।
आज 'गली क़ासिम' से होकर गुज़रा था,
साथ में थोड़ी जन्नत लेकर आया हूँ।
अब 'रौनक़' की बात न करना महफ़िल में,
उसके दर से हिजरत लेकर आया हूँ।
- 'रोहित-रौनक़'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 17 नवम्बर 2018 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रया मैम
हटाएंग़ज़ब भाई।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लेखन
आज 'गली क़ासिम' से होकर गुज़रा था,
साथ में थोड़ी जन्नत लेकर आया हूँ।
ThanKu💐
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएं🌺🌺🙏🙏
हटाएंबहुत ही उम्दा, बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंBahut thanku💐
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