कोई कमी थी मेरे हाल-ए-दिल सुनाने में।
वगरना कम तो न थे रहम दिल ज़माने में।
बस एक बार कहा उसने मुझको संजीदा,
फिर उसके बाद लगी उम्र मुस्कराने में।
वो जिनके लम्स से जाम-ओ-सुबू चहक उट्ठे,
ये कौन लोग हैं आख़िर शराब खाने में।
तुम्हारी यादों से शिकवा रहेगा आँखों को,
इन्ही का हाथ है रातें बड़ी बनाने में।
वगरना कम तो न थे रहम दिल ज़माने में।
बस एक बार कहा उसने मुझको संजीदा,
फिर उसके बाद लगी उम्र मुस्कराने में।
वो जिनके लम्स से जाम-ओ-सुबू चहक उट्ठे,
ये कौन लोग हैं आख़िर शराब खाने में।
तुम्हारी यादों से शिकवा रहेगा आँखों को,
इन्ही का हाथ है रातें बड़ी बनाने में।
सदायें आज भी आती हैं आसमानों से,
परिंदा आज भी उलझा है आब-ओ-दाने में।
लगाव दुनिया का बेजान चीज़ों से देखो,
लगे हैं लोग ख़ुदा को भी बुत बनाने में।
चराग़-ए-ख़ाहिश-ए-दिल तो जला लिया लेकिन,
धुआँ-धुआँ हुए 'रौनक़' धुआँ छुपाने में।
- 'रोहित-रौनक़'
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंThanku
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