गुरुवार, जनवरी 10

'ग़ज़ल' 42 दश्त की जो वीरानी है।

दश्त  की   जो  वीरानी  है।
कुछ   जानी   पहचानी  है।

लहरों की शोख़ी का सबब,
साहिल   की  उरियानी  है।

सहरा   सहरा   फिरता  हूँ,
दरिया   दरिया   पानी   है।

दरिया,  वरिया   दोयम   हैं,
अव्वल   ख़ारा   पानी    है।

इश्क़  का चक्कर है शायद,
सब  कुछ  धानी  धानी  है।

प्यास  तो  उसने बाद में दी,
पहले   बख़्शा    पानी   है।

जो  भी  है  सब  उसका है,
अपनी  'रौनक़'   फ़ानी  है।

रोहित-रौनक़

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