हर ख़ुशी से दर्द का मंज़र निकाल।
वरना तू इस ओखली से सर निकाल।
हां निकाल ऐ मेरे कूज़ागर निकाल।
जामे-जम से जाम इक बेहतर निकाल।
सामने से जब नज़र आए न साफ़,
अपनी बीनाई पस-ए-मंज़र निकाल।
जिसके डर से रास्ता बदला था कल,
आज ठोकर से वही ठोकर निकाल।
है थकन से चूर तन, दिल ग़म से चूर,
साक़िया अब तो मय-ओ-साग़र निकाल।
जो तेरी मर्ज़ी हो कर, और ज़हन से,
'लोग क्या सोचेंगे' इस का डर निकाल।
और है ही कौन बस इनके सिवा,
रहज़नों से ही कोई रहबर निकाल।
ये तजाहुल कम नहीं तख़रीबकार,
ज़हन के दर खोल इसे बाहर निकाल।
मार डालेंगी तुझे तनहाइयां,
"रौनक़" अब दीवार में इक दर निकाल।
- 'रोहित-रौनक़'
वरना तू इस ओखली से सर निकाल।
हां निकाल ऐ मेरे कूज़ागर निकाल।
जामे-जम से जाम इक बेहतर निकाल।
सामने से जब नज़र आए न साफ़,
अपनी बीनाई पस-ए-मंज़र निकाल।
जिसके डर से रास्ता बदला था कल,
आज ठोकर से वही ठोकर निकाल।
है थकन से चूर तन, दिल ग़म से चूर,
साक़िया अब तो मय-ओ-साग़र निकाल।
जो तेरी मर्ज़ी हो कर, और ज़हन से,
'लोग क्या सोचेंगे' इस का डर निकाल।
और है ही कौन बस इनके सिवा,
रहज़नों से ही कोई रहबर निकाल।
ये तजाहुल कम नहीं तख़रीबकार,
ज़हन के दर खोल इसे बाहर निकाल।
मार डालेंगी तुझे तनहाइयां,
"रौनक़" अब दीवार में इक दर निकाल।
- 'रोहित-रौनक़'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें