जिस ने तोड़ा उस को सिज्दा करता हूँ।
अपने टुकड़े ख़ुद ही जोड़ा करता हूँ।
बज़्म तुम्हारी बातों से खिल उठती है,
जब भी कहीं मैं ज़िक्र तुम्हारा करता हूँ।
देखे थे जो ख़ाब कभी मैंने उनका,
अब नींदों से मोल चुकाया करता हूं।
पहले तो कुछ -दोस्त हुआ करते थे साथ,
अब तो केवल ख़ुद को तन्हा करता हूँ।
फुरक़त की लंबी रातों में मैं 'रौनक़',
फ़िक़्र-ए-सुख़न की चौखट चूमा करता हूँ।
- "रोहित-रौनक़"
अपने टुकड़े ख़ुद ही जोड़ा करता हूँ।
बज़्म तुम्हारी बातों से खिल उठती है,
जब भी कहीं मैं ज़िक्र तुम्हारा करता हूँ।
देखे थे जो ख़ाब कभी मैंने उनका,
अब नींदों से मोल चुकाया करता हूं।
पहले तो कुछ -दोस्त हुआ करते थे साथ,
अब तो केवल ख़ुद को तन्हा करता हूँ।
फुरक़त की लंबी रातों में मैं 'रौनक़',
फ़िक़्र-ए-सुख़न की चौखट चूमा करता हूँ।
- "रोहित-रौनक़"
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