एक मुझ ग़म गुसार की चौखट।
और इक मेरे यार की चौखट।
पहले थी राज़दार की चौखट।
अब है वो इश्तेहार की चौखट।
उसका दहलीज़ से पलट जाना,
और दिल-ए -बेक़रार की चौखट।
हाय वो आलम-ए-ख़मीदा सर,
और उनके दियार की चौखट।
इतनी ख़ाहिश है मुझ को मिल जाए,
मेरे पर्वर्दगार की चौखट।
उसने की लाख इल्तिजा लेकिन,
मुद्दतों बाद पार की चौखट ।
एक दूजे की हम ही हैं "रौनक़"।
मैं, और इक इंतज़ार की चौखट।
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