गुरुवार, अप्रैल 19

'ग़ज़ल' 29 मुहब्बत का पढ़ेगा ऐसा मंतर, मार डालेगा।

मुहब्बत   का    पढ़ेगा   ऐसा  मंतर,   मार  डालेगा।
अना   को  बादशाहत   की  क़लन्दर   मार डालेगा।

रहोगे   दूर   तो  तिश्नःलबी   ही   क़त्ल   कर   देगी,

ज़ियादः  पास   जाओगे  तो   साग़र   मार  डालेगा।

मुहब्बत  में  बही  जाती  है  जिसकी ओर तू नदिया,

अरे   नादां   तुझे  वो   ही   समुन्दर   मार   डालेगा।

सितमकश आज ख़्वाहां हैं बहुत ज़ंजीर-शिकनी के,

कोई  उनको  ख़बर  कर दो सितमगर  मार डालेगा।

बहुत   ही   ख़ूबसूरत  है  तेरा   शीशः-कदः  'रौनक़',

प   दौर-ए-संगबारी   में   यही   घर   मार   डालेगा।

'रोहित-रौनक़'

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