एक निष्ठा से निरन्तर चल रहा हूँ।
मैं समय का मित्र हूँ ,निश्छल रहा हूँ।
बस तुम्हारे साथ ही तो चल रहा हूँ।
कब तुम्हारे पाँव की साँकल रहा हूँ।
तुम सदा ही प्रश्न हो मेरे लिए और,
मैं समस्याओं का सादा हल रहा हूँ।
आचमन करते तो पाते पुण्य भी तुम,
मैं कभी शिव की जटा का जल रहा हूँ।
फूल मुझमें ढूँढना संभव नहीं है,
नागफनियों का कठिन जंगल रहा हूँ।
कृष्ण ने वारे थे तीनों लोक जिस पर,
मैं सुदामा का वही चावल रहा हूँ।
-"रोहित-रौनक़"
मैं समय का मित्र हूँ ,निश्छल रहा हूँ।
बस तुम्हारे साथ ही तो चल रहा हूँ।
कब तुम्हारे पाँव की साँकल रहा हूँ।
तुम सदा ही प्रश्न हो मेरे लिए और,
मैं समस्याओं का सादा हल रहा हूँ।
आचमन करते तो पाते पुण्य भी तुम,
मैं कभी शिव की जटा का जल रहा हूँ।
फूल मुझमें ढूँढना संभव नहीं है,
नागफनियों का कठिन जंगल रहा हूँ।
कृष्ण ने वारे थे तीनों लोक जिस पर,
मैं सुदामा का वही चावल रहा हूँ।
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