जो भी मैने कहा अन्सुना रह गया।
और वो कहते हैं कहने को क्या रह गयाजब तलक साथ थे राहें गुलज़ार थीं,
अब तो बस यार का तज़किरा रह गया।
लोग मुझ पर से हो कर गुज़रते गए,
मैं जहां था वहीं पर खड़ा रह गया।
उसको मूरत में ढाला गया और मैं,
बंद होठों की बस इक दुआ रह गया।
खेल क़िस्मत ने खेले हमेशा अजब,
उसकी कारीगरी देखता रह गया।
©रोहिताश्व मिश्रा
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