सोमवार, दिसंबर 18

'ग़ज़ल' 24 मैं हबीब हूँ हवा का मेरा आश्ना दिया है।

ये   जो  राबिता  है  अपना  फ़क़त एक  शे'र सा है।
कोई  इक  रदीफ़ है तो  कोई  उसका   क़फ़िया   है।

है   अजीब  सी ये ख़्वाहिश कि रहें तो साथ दोनो,

मैं    हबीब   हूँ   हवा  का  मेरा    आश्ना    दिया   है।

कभी मुझसे आके पूछो, सर-ए-शाम क्यों बुझा हूँ,

कभी उसके पास जाओ,  जो तमाम दिन  जला है।

कभी छोड़ कर ये कश्ती, बहो दिल की आबजू में,

मेरे पास आओ, देखो,  मेरे  दिल  में  क्या  छिपा  है।

मेरा   क्या है   मेरी मंज़िल  मुझे  ढूँढ   लेगी  ख़ुद ही,

लो ख़बर तो राहबर की, कि कहाँ पे खो गया है।

तेरी  हिचकियाँ   ये रोहित  हैं सदाएं  तेरे दिल  की,

ये तो   ख़ुद फ़रेबी  है कि  कोई याद  कर रहा  है।

रोहिताश्व मिश्रा

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