हिक़ारत का जहां पौधा मिलेगा।
मुहब्बत का शजर सूखा मिलेगा।
भले हों आईने के दोस्त पत्थर,
मगर आईनः तो टूटा मिलेगा।
जहां भी मोतबर होंगे ज़ियादः,
वहीं सबसे बड़ा धोका मिलेगा।
भले फ़रहाद शीरीं मिल भी जाएं,
मगर परवाना तो जलता मिलेगा।
कि जिस को ख़ाहिश-ए-मक़सूद होगी,
वही मह्व-ए-सफ़र तन्हा मिलेगा।
कहाँ है तेरा वो वादा समुंदर,
कि हर प्यासे को इक दरिया मिलेगा।
कभी सेराब कर देता है सहरा,
समुंदर भी कहीं प्यासा मिलेगा।
ग़जल तब ही मुक़म्मल होगी 'रोहित',
किसी मत्ले को जब मक़्ता मिलेगा।
- रोहिताश्व मिश्रा
मुहब्बत का शजर सूखा मिलेगा।
भले हों आईने के दोस्त पत्थर,
मगर आईनः तो टूटा मिलेगा।
जहां भी मोतबर होंगे ज़ियादः,
वहीं सबसे बड़ा धोका मिलेगा।
भले फ़रहाद शीरीं मिल भी जाएं,
मगर परवाना तो जलता मिलेगा।
कि जिस को ख़ाहिश-ए-मक़सूद होगी,
वही मह्व-ए-सफ़र तन्हा मिलेगा।
कहाँ है तेरा वो वादा समुंदर,
कि हर प्यासे को इक दरिया मिलेगा।
कभी सेराब कर देता है सहरा,
समुंदर भी कहीं प्यासा मिलेगा।
ग़जल तब ही मुक़म्मल होगी 'रोहित',
किसी मत्ले को जब मक़्ता मिलेगा।
- रोहिताश्व मिश्रा
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