हमेशः बज़्म-ए-दिल खाली रही है।
मेरी ख़ाहिश भी तन्हाई रही है।
किसी के पास पूरा बैंक आया,
किसी के हाँथ में पाई रही है।
पहाड़ों ने सँभाला हर घड़ी पर,
नदी सागर की दीवानी रही है।
तुम्हारे भी बहाने कम नहीं हैं,
मेरी भी कोई मज्बूरी रही है।
उठाये हैं मसाइब हमने तन्हा,
ये दुनिया बस तमाशाई रही है।
©रोहिताश्व मिश्रा
मेरी ख़ाहिश भी तन्हाई रही है।
किसी के पास पूरा बैंक आया,
किसी के हाँथ में पाई रही है।
पहाड़ों ने सँभाला हर घड़ी पर,
नदी सागर की दीवानी रही है।
तुम्हारे भी बहाने कम नहीं हैं,
मेरी भी कोई मज्बूरी रही है।
उठाये हैं मसाइब हमने तन्हा,
ये दुनिया बस तमाशाई रही है।
©रोहिताश्व मिश्रा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें