क्या ज़रूरी है का़फ़िला रखिये।
साथ वालों से राबिता रखिये।
हम तो शौक़ीन हैं इबादत के,
आपका है ये मयकदा रखिये।
छोटी चौखट है, कोई गिर न पड़े,
इसलिए सेह्न में दिया रखिये।
आज लाइट है ठीक है लेकिन,
राह-ए-क़ंदील को भी वा रखिए।
सिर्फ़ बेदारी ही नहीं काफ़ी,
हम सा ग़ाफ़िल भी आश्ना रखिए।
काम लीजे हमेशा उल्फ़त से,
सर को अपने झुका हुआ रखिए।
कोई मेहमान आ ही जाएगा,
दिल का दरवाज़ा बस खुला रखिए।
तिश्नगी का गुमान टूटेगा,
आप साग़र भरा हुआ रखिये।
©रोहिताश्व मिश्रा
साथ वालों से राबिता रखिये।
हम तो शौक़ीन हैं इबादत के,
आपका है ये मयकदा रखिये।
छोटी चौखट है, कोई गिर न पड़े,
इसलिए सेह्न में दिया रखिये।
आज लाइट है ठीक है लेकिन,
राह-ए-क़ंदील को भी वा रखिए।
सिर्फ़ बेदारी ही नहीं काफ़ी,
हम सा ग़ाफ़िल भी आश्ना रखिए।
काम लीजे हमेशा उल्फ़त से,
सर को अपने झुका हुआ रखिए।
कोई मेहमान आ ही जाएगा,
दिल का दरवाज़ा बस खुला रखिए।
तिश्नगी का गुमान टूटेगा,
आप साग़र भरा हुआ रखिये।
©रोहिताश्व मिश्रा
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