मेरे दिल मे सुख़नवर बैठ गया।
सहरा में समंदर बैठ गया।
पहचान हुई तब अपनों की,
जब नेज़े पर सर बैठ गया।
जब बात चली किरदारों की,
मैं थोड़ा हट कर बैठ गया।
खोदे हैं किसी ने परबत तो,
कोई ठोकर खाकर बैठ गया।
बिल्डिंग की नुमाइश शुरू हुई,
घुट कर कारीगर बैठ गया।
ये सोच के छुप जाएंगे गुनाह,
वो धुनी रमाकर बैठ गया।
तब जाके अम्न का भूत उतरा,
जब सर पर पत्थर बैठ गया।
अभी चाक पे मिट्टी है रक़्सां,
थक कर क़ूज़ागर बैठ गया।
©रोहिताश्व मिश्रा
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