शनिवार, जून 3

"ग़ज़ल" 10 प्यार कर, अब लजाने से क्या फ़ाइदा

राज़ दिल में छुपाने से क्या फ़ाइदा।
हमसे नज़रें चुराने से क्या फ़ाइदा ।

हो गयी है मुहब्बत तो इज़्हार कर ।
प्यार कर, अब लजाने से क्या फ़ाइदा ।

हम तुम्हारे ही थे हम तुम्हारे ही हैं ।
बेसबब आज़माने से क्या फ़ाइदा ।

जिनकी महफ़िल रक़ीबों से गुलज़ार है ।
उनकी महफ़िल में जाने से क्या फ़ाइदा ।

दिल अगर तेरा सिज्दे में झुकता नही ।
सिर्फ सर को झुकाने से क्या फ़ाइदा ।

जिसको चाहा वो "रोहित" मिला ही नहीं ।
फिर हज़ारों के आने से क्या फ़ाइदा ।

©रोहिताश्व मिश्रा

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