शुक्रवार, जून 2

"ग़ज़ल" 9 वगरनः हमेशः सफ़र कीजिए।


ज़रा  प्यार  की इक नज़र कीजिए।
उदू के भी दिल पर असर कीजिए।

कोई   ढूँढ    लीजै   भला   राहबर,
वगरनः     हमेशः    सफ़र कीजिए।

बहुत   दूसरों   पर   भरोसा  किया,
हमें  भी  तो  अब मो'तबर कीजिए।

बुलाएं कभी हम को घर, चाय पर,
कभी साथ चल के डिनर कीजिए।

मुझे  रहम  की  कोई  हाजत  नहीं,
प्  जो  कीजिए  सोचकर कीजिए।

भले रूखी सूखी ही खा कर कटे,
मगर  ज़िन्दगी को, बसर कीजिए।

सुनेंगे   सभी   आप  की  बात  भी,
ज़रा   नर्म   लह्जः  अगर कीजिए।

© रोहिताश्व मिश्रा

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