शुक्रवार, मई 19

'ग़ज़ल" 7 जब क़रीब आई ज़फ़र तो हौसला देने लगे।

पास  जब  मंज़िल  के  पहुँचा  सब दुआ देने लगे।
राह   के   कांटे  भी'   ख़ुद  ही     रास्ता  देने लगे।

कहते'  थे  जो लोग  तेरे बस का' है कुछ भी नहीं,
जब  क़रीब  आई   ज़फ़र  तो   हौसला  देने लगे।

खुद की बीमारी भी' अब तक ठीक कर पाए नहीं,
और  बन  कर  चारा'गर  सबको  दवा  देने   लगे।

क्या बताएं आप को कुछ ऐसा' है उन का जमाल,
चाँद , तारे,  कहकशाँ   उनका   पता    देने   लगे।

एक  दिन  पहुँचेगी'  अपने घर भी "रोहित" शर्तियः,
शहर  की  आतिश  को'  अब  सारे हवा   देने लगे।

©रोहिताश्व मिश्रा

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