में कैसे रुकूं मंज़िल आने से पहले।
कहीं! तीर रुकते निशाने से पहले।
हमें देख लो दिल लगाने से पहले,
मुहब्बत की दुनिया में आने से पहले।
तभी ग़म किलोमीटरों तक नहीं हैं,
बहुत रो लिए खिलखिलाने से पहले।
इशारा ही देते नज़र को झुकाकर,
नशेमन पे बिजली गिराने से पहले।
यक़ीनन वो पर्दे में रोया तो होगा,
भरी बज़्म में मुस्कुराने से पहले।
वो कहते थे चादर में ही पैर फैला,
प "रोहित" का ज़र्फ़ आज़माने से पहले।
©रोहिताश्व मिश्रा
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