साथ तेरा अगर मुक़द्दर दे
कुछ न होगा ज़माना ठोकर दे
शहर के सब मकान रख ले तू,
मेरे हिस्से का मुझ को इक घर दे
इस प्रदूषित नदी से अच्छा है,
एक प्यासे को तू समंदर दे।
घर में छुप जाते हैं गुनाह सभी,
गेट पर हों जो क़ीमती पर्दे।
कोरा काग़ज़ हूँ मैं तो अय रोहित,
मुझको तू अपने रंग से भर दे।
©रोहिताश्व मिश्रा
कुछ न होगा ज़माना ठोकर दे
शहर के सब मकान रख ले तू,
मेरे हिस्से का मुझ को इक घर दे
इस प्रदूषित नदी से अच्छा है,
एक प्यासे को तू समंदर दे।
घर में छुप जाते हैं गुनाह सभी,
गेट पर हों जो क़ीमती पर्दे।
कोरा काग़ज़ हूँ मैं तो अय रोहित,
मुझको तू अपने रंग से भर दे।
©रोहिताश्व मिश्रा
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