गुरुवार, मई 4

"ग़ज़ल" 4 उन से कम ही मिला कीजिए


दिल ज़रा सा कड़ा कीजिए।
उन से कम ही मिला कीजिए।

ख़ुद ब ख़ुद हो उठे मर्हबा,
शे'र  ऐसा  कहा  कीजिए।

मुख़्तसर सी है ये ज़िंदगी,
दाइरा कुछ बड़ा कीजिए।

चाँद तारे भी सिज्दा करें,
अपना यूँ मर्तबा कीजिए।

कूँ ए महबूब जाता हूँ मैं,
मेरे हक़ में दुआ कीजिए।

कोई दिख जाए सूखा शजर,
तो  अदब  में  झुका कीजिए।

धीमी  आवाज़ दब  जाए तो,
अपना लहज़ा खरा कीजिए।

लोग कुछ भी  पुकारें  मगर,
आप "रोहित" कहा कीजिए।

©रोहिताश्व मिश्रा

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