सच है कि तुझको अब भी मयस्सर नहीं हूं मैं।
बाहर सफ़र पे निकला हूं घर पर नहीं हूं मैं।आंखों में क़ैद कर न सकोगे मुझे कभी,
ख़्वाब-ए-वफ़ा हूं शहर का मंज़र नहीं हूं मैं।
मुझमें चमकती रहती है ख़ुशियों की कायनात,
क़तरा हूं दिल के अश्क का, पत्थर नहीं हूं मैं।
लिखता हूँ वो जो दिल पे गुज़रता है रोज़ो-शब,
झूटी ग़ज़ल का कोई सुख़नवर नहीं हूं मैं।
धड़कन में दो जहान की फ़िकरों की है सदा,
वुसअत में आसमान से कमतर नहीं हूं मैं।
जुम्बिश पे तेरे लब की तरस आता है मुझे,
अफ़सोस है कि मीना ओ साग़र नहीं हूं मैं।
जो कुछ भी मांगना है ख़ुदा से न मांग लूं,
साइल हूं पर ज़माने के दर पर नहीं हूं मैं।
दरिया हूं, मुत्मइन हूं, मेरे लब पे है ख़ुशी,
बेदाद हसरतों का समुंदर नहीं हूं मैं।
रौनक़ को आज सोने दो छेड़ो न तुम सभी,
पूछे जो कोई, कहना कि घर पर नहीं हूं मैं।
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